पटना में पहले दिन बेची सब्जी, कमाई 22 रुपये, 3.5 साल बाद टर्नओवर 5 करोड़ पार.

ये हेडिंग आपको किसी सपने सरीखे लग रही होगी। लेकिन कौशलेंद्र ने इसे हकीकत में बदला है। असल में कौशलेंद्र IIM से एमबीए कंप्लीट करने के बाद पटना वापस लौट गए। यहां उन्होंने अपनी मां के नाम पर कौशल्या फाउंडेशन की स्थापना की। इससे पहले कौशलेंद्र ने पटना में एक स्कूल के पीछे सब्जी की छोटी सी दुकान खोली। इस दुकान पर उनके पहले दिन की कमाई मात्र 22 रुपये थी। लेकिन साढ़े तीन साल में ही कौशलेंद्र की कंपनी का टर्नओवर 5 करोड़ रुपए को पार कर गया। अब सवाल ये है कि ये सब हुआ कैसे? असल में कौशलेंद्र के दिमाग में एक ही बात क्लिक की। वो ये कि किसान तो कम कीमत में सब्जी बेचता है लेकिन शहरों तक आते-आते ये महंगी हो जाती है।
फिर क्या था कौशलेंद्र ने बिचौलिया सिस्टम को हटाने के लिए कमर कस ली। उन्होंने किसानों के माध्यम से ताजी सब्जियां सीधे शहरों में बेचने का प्लान बनाया। ये प्लान चल निकला। आज कौशलेंद्र के साथ 22 हजार से ज्यादा किसान जुड़कर काम कर रहे हैं। कौशलेंद्र ने पटना के पास एक छोटा कोल्ड चैंबर बनवाया है जिससे सब्जियां जल्दी खराब न हों। कौशलेंद्र कहते हैं कि बिना किसानों की स्थिति को ठीक किए बिहार की स्थिति नहीं बदली जा सकती। यही वजह है कि आईआईएम का यह स्टार आज किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में बैठ आराम की एसी वाली नौकरी करने की बजाय किसानों के बीच हैं। और मजे की बात ये देखिए कि खेती-किसानी के काम से करोड़ों का टर्नओवर भी कर रहे हैं।
सब्जी बेचकर भी कोई करोड़ों का बिजनेस खड़ा कर सकता है? अगर आपसे ये सवाल पूछा जाए तो एकबारगी आप शायद इसका जवाब न दे पाएं। सोचने लगें या हो सकता है हिसाब बिठाने लगें। ये भी हो सकता है कि आपकी आंखों के सामने मोहल्ले में सब्जी बेचने के लिए ठेला लेकर आता हुआ वो बुजुर्ग तैर जाए। जो पसीने में डूबा रहता है। तब शायद आप इस नतीजे पर पहुंचे कि नहीं जी, सब्जी बेच कैसे करोड़ों आएंगे। खैर अगर इस सवाल को जरा बदल कर पूछते हैं। अगर सब्जी बेचने वाला IIM टॉपर हो तो? ये कोरे सवाल नहीं हैं, बल्कि आपको आज हम बिहार के उस होनहार की कहानी बताने जा रहे हैं जिसने ये कर दिखाया है।

बिहार की माटी में ही कुछ खास है। ऐसे ऐसे हीरों को पैदा करती है जो खूब चमक बिखेरते हैं। ऐसे ही एक हीरा हैं बिहार के कौशलेंद्र सिंह। आज हम आपको इन्हीं की सफल कहानी बताने जा रहे हैं। कौशलेंद्र बिहार के नालंदा जिले के मोहम्मदपुर गांव के रहने वाले हैं। एक आम परिवार में जन्मे कौशलेंद्र खुद को सरकारी आदमी बताते हैं। एक टॉक शो में कौशलेंद्र कहते हैं कि एक बार मैंने पिताजी से कहा कि देखिए न मैं सरकारी नवोदय विद्यालय में पढ़ा, फिर सरकारी कॉलेज (इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च जूनागढ़) से इंजीनियरिंग किया, फिर आईआईएम अहमदाबाद से एमबीए कर लिया। कौशलेंद्र मजाक में कहते हैं कि मैं पूरी तरह सब्सिडी का प्रोडक्ट हूं। खैर कौशलेंद्र की जुबानी इस कहानी से आपको उनके बैकग्राउंड और शिक्षा दीक्षा का पता तो लग ही गया होगा।

आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत के जिस प्रतिष्ठित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (IIM) अहमदाबाद में एडमिशन होना मुश्किल होता है, कौशलेंद्र वहां के गोल्ड मेडलिस्ट हैं। IIM में कैंपस प्लेसमेंट करोड़ों में होता है। फिर सवाल ये कि कौशलेंद्र ने सब्जी बेचने का फैसला क्यों किया? इसके पीछे की वजह ऐसी है जिसे सुनकर आप हम सभी बिहारी को कौशलेंद्र पर गर्व की अनुभूति होगी। असल में गुजरात में पढ़ाई के दौरान कौशलेंद्र ने बिहारी मजदूरों के पलायन के दर्द को करीब से देखा। वो कहते हैं कि IIM के बाद नौकरी करना बेहद आसान विकल्प था, लेकिन मैं किसान का बेटा था और अपने प्रदेश का पलायन रोकना चाहता था।


Post a Comment

0 Comments